Wednesday, November 19, 2014

रामपाल, सरकार, और मिडिया


हरियाणा में तथाकथित संत रामपाल की गिरफ़्तारी के लिए जो ड्रामा हो रहा हैं, एक देशवासी के नाते, अध्यात्मप्रधान जीवन जीनेवाले व्यक्ति के नाते मन को बहुत दुःख पहुंचता हैं.
 
                                   रामपाल, जो न्याय व्यवस्था से भाग रहा हैं, पुलिस से लड़ रहा हैं


रामपाल को एक खून के आरोप में न्यायलय में उपस्थित होना हैं और अपनी गिरफ़्तारी को टालने के लिए वो एक बड़ी टोली के सरगना के तरह पुलिस के साथ ही लड़ने की कोशिश कर रहा हैं. पेट्रोल बम, हथियार, हजारो समर्थक इनके सहारे रामपाल भारत की प्रस्थापित न्याय व्यवस्था को ही ललकार रहा हैं. उसकी इस कोशिश में अनेक बेगुनाह व्यक्तियोंकी मौत होना मन को अधिक दुखी करता हैं. इस पुरे प्रकरण ने भारत की न्याय व्यवस्था, सरकार चलने की पद्धति, धर्म व्यवस्था, मिडिया की भूमिका इनपर गहरे प्रश्न उपस्थित किये हैं. 

हम इस बात को भूल नहीं सकते की भारत में बाबा, संत, गुरु, स्वामी, योगी इन लोगोंका समाज के साथ बहुत गहरा रिश्ता हैं. ऐसे महानुभावोंके प्रति प्रायः आदर और सम्मान का माहौल देश में है. देश के ग्रामीण भागोंमे, दुर्गम क्षेत्रों में, इतना ही नहीं शहरों में भी समस्या को सुलझाने के लिए  लोग संतों के पास विश्वास के साथ जाते हैं. समर्पण, भक्ति, श्रद्धा, और विश्वास का यह माहौल अपने आप में इंसान को उच्च मनोवैज्ञानिक स्तर पर ले जाता हैं और आत्मविश्वास बढ़ाता हैं. इस प्रकार की व्यवस्था के फायदे मैंने मेरे बचपन से अनुभव किये हैं. मनोवैज्ञानिक दबाव को हल्का करनेवाली यह उत्कृष्ट व्यवस्था हैं.

विदेशोंमे मानसिक बिमरियोंका प्रमाण अधिक हैं. मैंने मेरी ब्राज़ील यात्रा के दरमयान अनुभव किया हैं की वहां का युवा वर्ग पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों पर निर्भर हैं. अधिकाधिक युवक हर सप्ताह साइकोलोजिस्ट को मिलने जाते हैं और केमिकल दवा का प्रयोग करते हैं. उनके लिए विश्वास और श्रद्धा की ऐसी कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं हैं. भारतीय योग परंपरा से प्रभावित कुछ स्थानीय बाबा मदद करने की कोशिश करते हैं परन्तु युवकोंका भारतीयोंपर अधिक विश्वास हैं. कुछ युवाओंको मैं इंटरनेट, स्काईप, फेसबुक के माध्यम से मार्गदर्शन करने की कोशिश करता हुँ.

शायद यह व्यवस्था सिर्फ़ भारत की विशेषता हैं जो हजारो वर्षोंसे चलती आ रही हैं. इस व्यवस्था के बल पर ही आज भी भारत में लाखों अनुयायियोंका समर्थन प्राप्त हुए अनेक बाबा और संत हैं. 

                योग और आयुर्वेद के माध्यम से करोडो लोगोंको स्वस्थ्य प्रदान करनेवाले योगऋषि बाबा रामदेव


इस विश्वास और श्रद्धा की परंपरा संत जीवन व्यतीत करनेवाले व्यक्ति को अधिक ज़िम्मेदारी से पेश आने के लिए बाध्य करती हैं. यदि ऐसे बाबा या संत अपने कर्तव्य भूलकर अहंकार के भाव में चले जाते हैं तो पूरी सुन्दर व्यवस्था की नींव खोखली हो जायेगी। दूसरी और संत जीवन जीनेवाले व्यक्ति अपने साथियोंके साथ ही स्पर्धा में चले जाते हैं. और फिर संसाधन जुटाने के पीछे लगते हैं. और आजकल राजनीती की चपेट में आनेवाले बाबाओंकी संख्या बढ़ रही हैं. ऐसे अहंकार, अज्ञान, स्पर्धा और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के शिकार बाबाओंका प्रतिक हैं रामपाल।

रामपाल जैसे एक अहंकारी अभियुक्त को कानून के शिकंजे दायरे में लाने के लिए जो देरी हुयी हैं उसके लिए पिछले दशक से हरयाणा की शासन व्यवस्था को ही दोषी ठहराया जा सकता हैं. आज की शासन व्यवस्था को रामपाल को न्यायलय के सामने उपस्थित करवाने के सिवा अन्य कोई पर्याय उपलब्ध नहीं हैं. ऐसी अवस्था में रामपाल के बाहर एकदम युद्ध सदृश परिस्थिति उत्पन्न हुई हैं. न्याय व्यवस्था को ललकारने वाला गुंडा रामपाल और न्यायव्यवस्था को प्रस्थापित करने के लिए प्रयास करने वाली पुलिस ऐसा युद्ध का स्वरुप हैं.

इस युद्ध में मिडिया की भूमिका और मिडिया पर हुए हमले ने एक नया स्वरुप प्रदान किया हैं. इस पुरे प्रकारण ने मुझे २६/११ वाले मुंबई के आतंकवादी हमले की याद दिलायी। इस हमले में आतंकवादियोंको सहाय्यक साबित होनेवाली मिडिया की भूमिका पर गंभीर प्रश्न उपस्थित हुए थे. रामपाल मामले भी मिडिया रामपाल के आश्रम में उपस्थित गुंडोंको मददगार हो सके ऐसी योजना में तो नहीं थे? ऐसे गंभीर परिस्थिति में मिडिया वाले अधिक जिम्मेदारी से पेश आते हैं तो देश के लिए भला होगा। मेरा मानना यह हैं की यदि प्रशासन द्वारा गलती हुयी हैं तो अधिकारियोंके ऊपर सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए।
 
ऐसे प्रकरणोंमे मिडिया बहाना बनाकर पुरे संत समाज को बदनाम करने की जो कोशिश करता हैं वह अत्यंत निंदनीय हैं. आज भारत की यदि कोई विशेष या अतिविशेष पहचान हैं तो वोह हैं संत परंपरा या योगी परंपरा। इस परंपरा के प्रति विश्व अधिकाधिक आकर्षित हो रहा हैं. इस परंपरा में ही विश्वशांति के बीज हैं. साईबाबा, सत्य साईं, माँ आनन्दमयी, कांची के परमाचार्य, रमण महर्षि, स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद और ऐसे अनेक संतोने पिछले दशकोंमे विश्व को शांति और ज्ञान का मार्ग दिखाया हैं. 

 

                                                                         श्री श्री रविशंकर

बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, माता अमृतानंदमयी और अनेक संत आज भी भारत की संत परंपरा का परचम विश्व में लहरा रहे हैं. योग आज विश्व धर्म के रूप में प्रस्तुत हुआ हैं. ऐसे समय योग भूमिका में रहकर जीवन जीनेवाले संत, बाबा, योगियोंको कलानुरूप ख़ुदको बदलने की ज़रूरत हैं और धर्मध्वजाको अधिक गर्व से फहराना चाहिए। ऐसे परिस्थिति में संतोंको मेरा सुझाव हैं की सक्रीय राजनीती से दूर रहें।

अर्थात भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी राजनीती में संत जीवन व्यतित करनेवाले श्रेष्ठ आत्मा हैं
 
योगी अरविन्द
(ऋषिकेश)

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